खिलाडी क्रिकेट के, मैदान राजनीति का
नई दिल्ली, 09 मार्च । क्रिकेट के लोकप्रियता को चुनावों में भुनाने के लिए राजनीतिक दल हमेशा तत्पर रहते हैं और काफी हद तक सफल भी रहे हैं। क्रिकेट खिलाडियों को भी राजनीति का क्षेत्र काफी भाया है और इस
नई दिल्ली, 09 मार्च । क्रिकेट के लोकप्रियता को चुनावों में भुनाने के लिए राजनीतिक दल हमेशा तत्पर रहते हैं और काफी हद तक सफल भी रहे हैं। क्रिकेट खिलाडियों को भी राजनीति का क्षेत्र काफी भाया है और इस क्षेत्र में हाथ आजमाने के लिए कई लोग आज भी प्रयासरत हैं। हमारे यहां क्रिकेट एक खेल से ज्यादा इबादत का मुद्दा रहा है। यहां क्रिकेट पूजा जाता है। यहां व्यक्ति अपना जरूरी काम छोड़ कर भी क्रिकेट देखता और खेलता है। बात अगर सचिन तेंदुलकर की करें तो उन्होंने राज्यसभा सदस्यता स्वीकार कर ली है।
सचिन पहले क्रिकेटर नहीं हैं, जो सक्रिय राजनीति में आये हैं। लेकिन यह जरुरी नहीं कि क्रिकेट के मैदान में चौके, छक्के लगाने वाला खिलाडी राजनिति के मैदान में भी सफल हो सकता है। हमारे यहां कई खिलाडियों ने राजनीति में हाथ आजमाया लेकिन अंततः कम को ही सफलता मिली। सचिन राज्यसभा की सदस्य तो बन गये लेकिन संसद में उन्होंने केवल दो बार ही दर्शन दिये। सचिन के सदन में न आने से उनका विरोध भी शुरु हो गया और यहां तक बातें होने लगीं कि जब सचिन को सदन में नहीं आना था तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य क्यों मनोनित किया गया।
देश की प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस ने कई क्रिकेटरों को राजनीति में लाया व उनको एक अलग पहचान दिलायी। इस कडी में पहला नाम भारतीय क्रिकेट जगत का सबसे चर्चित नाम मंसूर अली खान पटौदी उर्फ टाईगर का आता है। क्रिकेट से अलगाव के बाद पटौदी ने राजनीति ज्वाइन की लेकिन इसमें भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। पटौदी ने 1999 में कांग्रेस के टिकट से भोपाल से चुनाव लड़ा लेकिन उनकी हार हुई इससे पहले भी पटौदी गुडगांव में विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ वहां से भी हारे थे।
पटौदी अब तक भारत के एक सफल कप्तानों में से एक रहे हैं। पटौदी ने 46 टेस्ट मैच खेले जिसमें उन्होंने 2793रन बनाये। इन्ही की कप्तानी में विदेशी धरती पर भारत ने अपनी पहली जीत दर्ज की थी।
पटौदी के बाद नाम आता है क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने मुहम्मद अजहरुद्दीन का। अजहर मुरादाबाद से कांग्रेस सांसद हैं। मूल रूप से हैदराबाद से ताल्लुख रखने वाले अजहर की लोकप्रियता और उनके इस कथन को गंभीरता से लेते हुए कांग्रेस ने 2009 में अपनी पार्टी की सदस्यता दी। जिसके बल पर अजहर ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से चुनाव लड़ अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को भारी मतों से पराजित किया था। लेकिन चुनाव जीतने के बाद अजहर ने अपने क्षेत्र में विकास के नाम पर कुछ नहीं किया, जिससे जनता में उनके प्रति रोष साफ देखा जा सकता है। खुद अजहर को भी इस बात का अहसास होने लगा था कि वो दोबारा इस क्षेत्र से चुनाव नहीं जीत सकते। इसलिए उन्होंने आलाकमान से दूसरे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से टिकट की मांग शुरु कर दी थी, अब देखना है कि पार्टी उन्हें किस जगह से टिकट देती है।
कांग्रेस ने अपनी परम्परा को जारी रखते हुए इस बार के लोकसभा चुनावों में एक और भारतीय सितारे मोहम्मद कैफ को इलाहाबाद के फूलपुर से टिकट दिया है। अब देखना है कि कैफ इस नयी पारी में कितना सफल होते हैं।
कांग्रेस के अलावा एक और राष्ट्रीय पार्टी भारतीय जनता पार्टी भी इस मामले में पीछे नहीं रही है। भाजपा ने भारतीय टीम के प्रसिद्ध खिलाडी नवजोत सिंह सिद्धू को अपनी पार्टी में शामिल किया सिद्धू एक क्रिकेट खिलाड़ी, एक राजनेता से ज्यादा एक क्रिकेट समीक्षक के रूप में लोगों के बीच जाने जाते हैं। सिद्धू ने 2004 में अपनी सक्रिय राजनीति की शुरुआत की और उन्होंने भाजपा के टिकट से लोक सभा का चुनाव जीता जल्द ही एक हत्या में दोषी पाए जाने के कारण उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद सिद्धू ने दोबारा अमृतसर लोक सभा सीट से चुनाव लड़ा और 77,626 के भारी अंतर से इन्होने अपने प्रतिद्वंदी सुरिंदर सिंगला को हरा कर जीत दर्ज की और कुर्सी को प्राप्त किया। लेकिन कुर्सी प्राप्त करने के बाद सिद्धू अपने क्षेत्र में कम और अन्य कार्यों में ज्यादा नजर आये या यू कहें कि अपनी क्षेत्र की जनता को छोड सिद्धू टीवी चैनलों पर आने वाले कार्यक्रमों में ज्यादा व्यस्त रहे। उनके इस रवैये से क्षेत्र की जनता में उनके प्रति काफी रोष व्याप्त हो गया, जिसका अहसास शायद सिद्धू को भी हो गया था, तभी उन्होंने भाजपा द्वारा पश्चिमी दिल्ली से दिये गये टिकट को ठुकरा दिया और चुनाव लडने से मना कर दिया। हालांकि सिद्धू की पत्नी जो कि विधायक भी हैं वह अमृतसर से उनकी जगह चुनाव लड सकती हैं।
क्रिकेटर से भाजपा की टीम में शामिल अगले खिलाडी के रुप में अगला नाम आता है कीर्ति आजाद का। कीर्ति का जन्म बिहार के पुरनिया में हुआ था। इन्होने 1980 से 1986 के बीच 7 टेस्ट और 25 एक दिवसीय मैच खेले थे। ये भारतीय टीम के उस दौर के खिलाडी है जब कपिल देव भारत के कप्तान हुआ करते थे। कीर्ति के पिता भगवत झा आजाद का नाम भारत के सफल राजनैतिज्ञों में आता है जो एक बार बिहार के मुख्य मंत्री भी रह चुकें हैं। अतः इन्होने उनके ही नक्शे कदम पर चलते हुए राजनीति ज्वाइन की। इन्होने भारतीय जनता पार्टी के टिकट से बिहार के ही दरभंगा से चुनाव लड़ा और भारी मतों से विजय हुए। ज्ञात हो की कीर्ति आज भी इसी सीट से एम पी हैं ।
भाजपा से एक और पूर्व खिलाडी ने राजनीति में अपना अलग मुकाम बनाया, इस खिलाडी का नाम है चेतन चौहान। भारत के सलामी बल्लेबाज रहे चौहान ने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर 1991 और 1998 में अमरोहा से लोकसभा चुनाव जीता जबकि 1996, 1999, 2004 व 2009 में उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा। 2009 में चौहान को पूर्वी दिल्ली से संदीप दीक्षित ने भारी मतों के अंतर से हराया था।
भारतीय ऑलराउंडर मनोज प्रभाकर ने भी राजनीति में 1998 में किस्मत आजमाई लेकिन उनकी सभाओं में कपिल की मौजूदगी भी उन्हें जीत नहीं दिला सकी जबकि बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष और दिग्गज प्रशासक डूंगरपुर भी भाजपा सदस्य रहे।
क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने खिलाडी के रूप में तीसरा नाम आता है विनोद कांबली का। अपने शुरूआती दौर से ही काम्बली एक अलग क्रिकेट के लिए मशहूर थे और इन्हें क्रिकेट समीक्षकों द्वारा एक बेहतरीन खिलाड़ी भी कहा जाता था। विनोद ने अपने राजनैतिक कैरियर की शुरुआत 2009 में अपने ग्रह नगर मुंबई से लोक भारती पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर राजनीति की शुरुआत करी लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और उनको करारी हार का सामना करना पड़ा। आपको बताते चलें की कांबली आज भी इस पार्टी के उपाध्यक्ष हैं। जो अभी भी लगातार समाज सेवा से जुड़े हुए हैं।
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