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1987 वर्ल्ड कप का स्पांसर बनने के लिए Reliance ने रखी थी बड़ी शर्त,PM राजीव गांधी के साथ बैठा था ये शख्स

1987 वर्ल्ड कप का आयोजन भारतीय उपमहाद्वीप को कैसे मिला- इसकी स्टोरी अगर अनोखी है तो ये आयोजन हासिल करने के बाद जो हुआ उसकी स्टोरी तो और भी अनोखी हैं। इन्हीं में से एक है वर्ल्ड कप के लिए

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 Dhirubhai Ambani wanted to sit next to the PM Rajiv Gandhi in between India vs Pakistan exhibition
Dhirubhai Ambani wanted to sit next to the PM Rajiv Gandhi in between India vs Pakistan exhibition (Image Source: Google)
Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
Sep 21, 2023 • 02:15 PM

1987 वर्ल्ड कप का आयोजन भारतीय उपमहाद्वीप को कैसे मिला- इसकी स्टोरी अगर अनोखी है तो ये आयोजन हासिल करने के बाद जो हुआ उसकी स्टोरी तो और भी अनोखी हैं। इन्हीं में से एक है वर्ल्ड कप के लिए स्पांसर ढूंढना। पाकिस्तान हालांकि संयुक्त मेजबान था पर उन्होंने पहले ही साफ़ कर दिया था कि पैसे का इंतजाम या स्पांसर ढूंढना- ये सब भारत को करना होगा। वर्ल्ड कप का सफलता से आयोजन एनकेपी साल्वे के लिए व्यक्तिगत सम्मान से ज्यादा देश का सम्मान था और वे ये सब करते रहे। स्पांसर जल्दी से मिलना बहुत जरूरी था क्योंकि तय ये हुआ था कि दिसंबर 1984 तक सभी आईसीसी सदस्य देशों को उनकी तय गारंटी मनी की पेमेंट कर देंगे- हालांकि वर्ल्ड कप 1987 में था। 

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
September 21, 2023 • 02:15 PM

उस पर, और भी बड़ा सिर दर्द ये कि पैसा फॉरन करेंसी में देना था। तब देश में न तो आज की तरह से पैसा था और न फॉरन करेंसी का बड़ा रिजर्व। इसलिए हल ढूंढा कि कोई विदेशी स्पांसर ले आओ। कोई नहीं मिला। उसके बाद मूलतः भारत के हिंदुजा भाइयों का हिंदुजा ग्रुप तैयार हो गया। ये वर्ल्ड कप- हिंदुजा कप बनने के बहुत करीब था पर कुछ शर्त पर बात अटक गई। 

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आख़िरी तारीख नजदीक आ रही थी और ऐसे में सरकार ने अपने फॉरन करेंसी खजाने की बहुत अच्छी हालत न होने के बावजूद मदद की पर शर्त ये थी कि पैसा तो बीसीसीआई को ही लाना होगा। अब चूंकि ये साफ़ हो गया कि स्पांसर रुपये में भी पैसा दे तो काम चलेगा- इसलिए भारत में स्पांसर ढूंढा गया। तब आज की तरह से स्पांसरशिप के कई दावेदार नहीं होते थे- स्पांसर ढूंढना पड़ता था।  

ये तलाश रुकी रिलायंस ग्रुप पर। तब धीरू भाई अंबानी जीवित थे और ग्रुप एक ही था- उन्होंने अपने बेटे अनिल अंबानी को कंपनी की तरफ से इस बारे में बातचीत और शर्तें तय करने का अधिकार दे दिया। ये मानना होगा कि रिलायंस अगर कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों पर ही अड़े रहते तो वर्ल्ड कप का आयोजन वैसा न हो पाता जैसा हुआ- वे हर संकट में बीसीसीआई के साथ थे।  

स्पांसरशिप कॉन्ट्रैक्ट था- 4 करोड़ रुपये का। उस समय ये बहुत बड़ी रकम थी। उसके बाद जब बीसीसीआई को भारत में खेले जाने वाले सभी मैच में इन-स्टेडिया एड के लिए कोई स्पांसर नहीं मिल रहा था तो भी वे ही आगे आए और 2.6 करोड़ रुपये और दिए। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि टीमों के ठहरने का कोई इंतजाम नहीं था और बड़े होटल जो पैसा मांग रहे थे- वह भी बीसीसीआई की जेब पर भारी पड़ रहा था। कॉन्ट्रैक्ट में ये खर्चा उनके हिस्से में नहीं था पर मदद की लेकिन इस शर्त पर कि होटल वे चुनेंगे। 

ये सब पढ़ने में बड़ा आकर्षक है पर रिलायंस के साथ स्पांसरशिप कॉन्ट्रैक्ट इतनी आसानी से नहीं हो पाया था। सभी मुद्दों पर सहमति के बाद, रिलायंस की तरफ से आखिर में एक ऐसी अनोखी शर्त रखी गई जिसे पूरा कर पाना अकेले बीसीसीआई के बस में तो था ही नहीं, आज तक कहीं भी, किसी भी स्पांसर ने ऐसी शर्त न रखी होगी। वे सिर्फ पैसा देकर नाम चाहने वाले स्पांसर नहीं थे- ये उनके लिए अपनी ब्रांड को एक नई पहचान देने, उसे लोकप्रिय बनाने का मौका था और वे इसे खाली हाथ नहीं जाने दे रहे थे। 

तब वर्ल्ड कप से ठीक पहले, माहौल बनाने के लिए एक भारत-पाकिस्तान प्रदर्शनी मैच खेलने का प्रस्ताव था और ये भी तय था कि इस का नेशनल टीवी (दूरदर्शन और पीटीवी) पर सीधे टेलीकास्ट होगा। कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर से पहले, रिलायंस ग्रुप की तरफ से शर्त रखी गई कि उसमें धीरू भाई अंबानी को प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बगल में बैठाया जाएगा। ऐसा क्यों- इस से ये साबित करना था कि उनकी प्रधानमंत्री से निकटता है और मीडिया में ये संदेश कि रिलायंस के सरकार के साथ मधुर संबंध हैं। अब भला बीसीसीआई ये वायदा कैसे कर दे कि प्रधानमंत्री मैच देखेंगे तो उनके साथ की सीट पर धीरू भाई को बैठाया जाएगा?

और कोई स्पांसर लाइन में था नहीं और नजदीक आ रहे वर्ल्ड कप के लिए पैसा चाहिए था। सबसे पहले तो एनकेपी साल्वे इसके लिए राजी हुए और चूंकि वे खुद सरकार में मिनिस्टर थे- इस मुद्दे पर ,प्रधानमंत्री की सहमति लेने का काम उन्हीं के हिस्से में आ गया। उस समय पूरे देश में बस एक ही सोच थी- वर्ल्ड कप का आयोजन लिया है तो इसे कामयाब बनाना है। इसी सोच में प्रधानमंत्री भी इसके लिए राजी हो गए। प्रोटोकॉल तोड़ा गया और धीरू भाई ने प्रधानमंत्री के साथ बैठ कर ये मैच देखा।
 
इसी तरह रिलायंस की नाम पर बड़ी जिद्द थी। उन्होंने तो टूर्नामेंट ही बदल दिया- तब वर्ल्ड कप नहीं, रिलायंस कप खेले! वर्ल्ड कप अचानक रिलायंस कप में बदल गया- अंबानी परिवार का पूरा ध्यान सिर्फ ब्रांड इमेज पर था। अनिल अंबानी को आईसीसी की एक मीटिंग में, साल्वे अपने साथ ले गए। लंदन में एक बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस में ब्रिटिश पत्रकार वर्ल्ड कप के स्पांसर से जानना चाहते थे उनकी सोच के बारे में। शुरुआत एक साथ 4-5 सवाल से हुई और सवाल वर्ल्ड कप के बारे में थे। अनिल अंबानी ने छोटा सा जवाब दिया- 'हम कोई वर्ल्ड कप स्पांसर नहीं कर रहे।' कॉन्फ्रेंस में सन्नाटा छा गया- वर्ल्ड कप सिर पर और स्पांसर ऐसा जवाब दे रहा है। ये सन्नाटा उन्होंने खुद तोड़ा- 'हम रिलायंस कप स्पांसर कर रहे हैं और आप रिलायंस कप के बारे में चाहे जो पूछिए।'

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इस रिपोर्ट में लिखा हर संदर्भ अपने-आप में एक अलग स्टोरी है। ऐसा कोई वर्ल्ड कप उसके बाद आयोजित नहीं हुआ।

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