क्रिकेट विवाद : वाडेकर बनाम बेदी
किसी क्रिकेट टीम के दो वरिष्ठ खिलाड़ियों के बीच आपसी मतभेद होना कोई नई बात नहीं है। गावस्कर औऱ कपिल देव के बीच आपसी मतभेद का उदाहरण कुछ पुराना नहीं है।
किसी क्रिकेट टीम के दो सीनियर खिलाड़ियों के बीच आपसी मतभेद होना कोई नई बात नहीं है। गावस्कर औऱ कपिल देव के बीच आपसी मतभेद का उदाहरण कुछ पुराना नहीं है। ठीक इसी तरह से 1974 में जब भारत की टीम तीन टेस्ट मैचों की सीरीज के लिए इंग्लैड गई थी तो उस टीम को दो प्रमुख खिलाड़ी अजीत वाडेकर और बिशन सिंह बेदी थे । वाडेकर टीम के कप्तान था और बेदी विश्व प्रसिद्ध स्पिनर थे।
वाडेकर की कप्तानी में इससे पहले इंडिया लगातार तीन टेस्ट सीरीज जीत चुका था और निश्चित रूप से वाडेकर की सफलता का डंका बज रहा था। बेदी की उस समय प्रतिष्ठा ये थी कि उसे भारत का ही नहीं विश्व का सर्वश्रेष्ठ खब्बू स्पिनर माना जा रहा था और भारत की आक्रामण का बहुत कुछ बेदी के प्रदर्शन पर निर्भर था। दोनों अपने आप में किसी से कम नहीं थे औऱ इसीलिए दोनों एक दूसरे को अपने से महत्वपूर्ण समझने के लिए तैयार नहीं थे।
यात्रा की शुरूआत ईस्बोर्न में डैरिक रॉबिन्स इलेवन के विरूद्ध मैच से हुई । मैच के पहले दिन शाम को पूरी भारतीय टीम वहां वह रह रहे एक भारतीय परिवार के यहां आमंत्रित थे। बस वहीं पहले तो किसी बात को लेकर दोनों के बीच में झड़प हुई पर धीरे-धीरे उसने तू-तू, मैं-मैं का रूप ले लिया। दोनों ने एक दूसरे को भरा बुला कहने ने कोई कसर नहीं छोड़ी और सबसे बड़ी बात यह थी की यह किसी तीसरे व्यक्ति के घर पर लड़ रहे थे औऱ वह भी टीम के अन्य खिलाड़ियों के सामनें। टीम के सभी खिलाड़ी यह देखकर काफी हैरान थे कि आखिर यह हो क्या रहा है।
बेदी औऱ वाडेकर के बीच अहम का टकराव वास्तव में भारतीय क्रिकेट की इन दो मशहूर हस्तियों के बीच आपसी टकराव के साथ साथ मुंबई और दिल्ली की क्रिकेट के बीच टकराव की निशानी भी थी। बंबई को इंडिया में क्रिकेट का मक्का माना जाता था जबकि बेदी ने दिल्ली को एक जोरदार क्रिकेट शक्ति के रूप में सभी के सामनें ला खड़ा किया था। । बेदी साथी खिलाड़ियों के बीच में काफी लोकप्रिय थे और ऐसे में साफ आसार थे कि वाडेकर के बाद बेदी ही टीम के नए कप्तान बनेंगे। ऐसे में भला कौन किससे कम था।
वाडेकर और बेदी के बीच टकराव का दूसरा कारण था कि बेदी को वाडेकर का उसे गेंदबाजी के बारे में निर्देश देना पसंद नहीं था। बेदी अपने आप को इतना परिपक्व औऱ अनुभवी समझता था कि वह मौके के अनुसार और बल्लेबाज को देखकर खुद ही तय कर सकता था कि किस तरह की गेंद फेंकनी चाहिए। दोनों का इस तरह आपसी असहयोग उन्हें लगातार एक –दूसरे से दूर ले जा रहा था।
इंग्लैंड सीरीज में लॉर्ड्स में खेले गए दूसरे टेस्ट मैच में वही हुआ। डेनिस एमिस और अपना पहला टेस्ट खेल रहे डेविड लॉय़ड ने इंग्लैंड को शतकीय शुरूआत दी। इसके साथ ही भारतीय गेंदबाजों पर इंग्लैंड के बल्लेबाजों ने जोरदार आक्रमण शुरू कर दिया और फटाफट रन बनाने लगे। जब इंग्लैड का चौथा विकेट गिरा उस समय उसका स्कोर 369 रन था औऱ यहां से कप्तान माइकल डैनेस औऱ टोनी ग्रैग के बीच साझेदारी शुरू हुई। अब तक स्पिनरो की खूब पिटाई हुई थी। लेकिन जिस तरह से डैनेस और ग्रैग ने भारतीय इंडिया की धुलाई की थी तो ऐसा लग रहा था कि वह किसी स्कूल की टीम के खिलाफ खेल रहे हों।
बेदी उस दौर में लगातार गेंद को फ्लाइट कराते जा रहे थे और दोनों बल्लेबाज आगे बढ़कर या तो ड्राइव लगा रहे थे या बैकफुट पर आकर कट या पुल शॉट लगा रहे थे। स्टेडियम में किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरी बेदी बॉल को फ्लाइट क्यों दे रहे हैं। मगर बेदी रूक ही नहीं रहे थे। मजे की बात तो यह थी कि जबरदस्त पिटाई के बाद भी कप्तान वाडेकर ने उसे बॉलिंग से नहीं हटाया। बेदी ने गेंद को फ्लाइट देकर विकेट खरीदने की कोशिश की। डैनेस और ग्रैग की जोड़ी की जोड़ी 202 रन जोड़ गई और इंग्लैंड ने कुल 629 रन बनाकर एक पारी और 285 रन के विशाल अंतर से टेस्ट मैच जीत लिया। बेदी ने 64.2 ओवरों में 226 रन देकर 6 विकेट लिए। बेदी लॉर्ड्स में 200 रन देने वाले पहले गेंदबाज बने औऱ वाडेकर ने और उसके समर्थकों ने टेस्ट में भारत की हार का दोष बेदी को दिया।
ये वहीं टेस्ट था जिसमें दूसरी पारी में भारत की टीम सिर्फ 42 रन पर ही आउट हो गई थी। अब ये चर्चा के लिए अच्छा विषय ही है कि भारत की हार के लिए बेदी की गेंदबाजी जिम्मेदार थी या भारतीय बल्लेबाजों की असफलता।
टेस्ट खत्म होने के एक दिन बाद भारतीय हाई कमिश्नर ने टीम को अपने यहां आमंत्रित किया । उसी दिन वहां जाने से पहले भारतीय टीम को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक समारोह में भी जाना था। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के समारोह से फिर हाई कमिश्नर के समारोह तक पहुंचने में भारतीय टीम निर्धारित समय से 40 मिनट लेट हो गई थी। अब यह बात किसी से छिपी नहीं है हालांकि कप्तान वाडेकर ने वहां पहुंचते ही हाई कमिश्नर से कहा था कि माफ कीजिए हम देर से आए हैं पर फिर भी गुस्से से आग बबुला हाई कमिश्नर ने वाडेकर और उसके साथी खिलाड़ियों को गैट आउट का ऑर्डर सुना दिया था।
भारतीय खिलाड़ी तुरंत समारोह से बाहर निकलकर बाहर खड़ी अपनी बस में आकर बैठ गए , वहीं खिलाड़ियों और मैनेजर में आपस में ये चर्चा शुरू हो गई की क्या पार्टी में लौटा जाए ( हाई कमिश्नर ने भारतीय खिलाड़ियों को पार्टी में वापस लौट आने के संदेश भेजा था। बड़ी बेहसबाजी के बाद भारतीय खिलाड़ी लौटे पर बाद में किसी ने ये याद नहीं रखा कि उस बहसबाजी में किसने क्या कहा था। हां जिस एक खिलाड़ी की बातों को याद रखा गया और फिर पत्रकारों को लीक भी कर दिया गया वह खिलाड़ी बिशन सिंह बेदी थी। अखबारो और सरकारी क्षेत्रों में बेदी की काफी आलोचना हुई (हालांकि यहां बेदी ने वाडेकर के अपमान के खिलाफ आवज उठाई थी)।
सच ये है कि बेदी ने कतई हाई कमिश्नर की आलोचना नहीं की थी। बेदी ने तो ये कहा था , अगर हम जीते होते औऱ तब हम इतनी देर से भा आए होते तो कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि हम हार गए हैं इसलिए हमारा अपमान किया गया है।
भारत इस सीरीज के तीनों टेस्ट मैच हारा औऱ उसके प्रदर्शन की काफी आलोचना हुई । बम्बई में अजीत वाडेकर के घर पत्थर फेंके गए। यहां तक की 1971 में वेस्टइंडीज और इंग्लैंड में भारत की जीत के अवसर पर इंदौर में दो बड़े आकार का क्रिकेट बैट यादगार के तौर पर बनाया गया था उसे भी तोड़ दिया गया।
1974-75 के सीजन की शुरूआत हंगामे से हुई । सबसे पहले वाडेकर को पश्चिम क्षेत्र कप्तान पद से हटाया गया औऱ फिर इतना है नहीं इसे पश्चिम क्षेत्र की टीम से भी निकाल दिया गया। कहा गया कि वाडेकर फॉम में नहीं है जबकि गावस्कर औऱ विश्वनाथ की तरह वाडेकर उस समय भारत के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाज थे। वाडेकर ने अंदाजा लगा लिया था कि हवा का रूख किस ओर है और इसी का अंदाजा लगाते हुई वाडेकर ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट से सन्यास लेने की घोषणा कर दी थी। इसके साथ ही भारत के टेस्ट इतिहास में एक बेहद सफल कप्तान की कहानी खत्म हो गई ।
अफसोस की बात यह थी कि वाडेकर की यह दास्तांन एक निराशाजनक श्रृंखला के साथ खत्म हुई। वाडेकर के दुर्भाग्य के इस दौर मे बिशन सिंह बेदी का क्या योगदान रहा । 1974-75 में तो पटौदी भारत के कप्तान बने लेकिन 1975-76 में कप्तान पद लंबे समय तक बिशन सिंह बेदी के पास आ गया। बेदी की कप्तानी उत्तर क्षेत्र व दिल्ली की क्रिकेट के सर्वश्रेष्ठ दौर का संकेत थी पर इस बात को नहीं भूलना होगा कि इस नए दौर की नींव बहुत कुछ 1974 की इंग्लैंड यात्रा के दौरान रख दी गई थी।
सौरभ शर्मा ( सौजन्य : क्रिकेट भारती )
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