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Cricket Tales - टेस्ट टीम में आने के बावजूद 5 साल क्रिकेट नहीं खेला इंजीनियरिंग की डिग्री के लिए

Cricket Tales - भारत के दिग्गज स्पिनर इरापल्ली प्रसन्ना ने जनवरी 1962 में और मार्च 1962 में दूसरा टेस्ट खेला। 5 साल तक क्रिकेट से दूर रहे और इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की।अपना अगला टेस्ट खेला जनवरी 1967 में वेस्टइंडीज

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Erapalli Prasanna
Erapalli Prasanna (Image Source: Google)
Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
Jul 26, 2022 • 04:59 PM

Cricket Tales - भारत के दिग्गज स्पिनर इरापल्ली प्रसन्ना ने 49 टेस्ट खेले, जिनमें 189 विकेट लिए और जिस दौर में भारत का एक टेस्ट जीतना बहुत बड़ी बात मानते थे- कई मैच जीतने में अहम भूमिका निभाई। ऑफ स्पिनर प्रसन्ना ने बिशन सिंह बेदी, भागवत चंद्रशेखर और एस. वेंकटराघवन के साथ मिलकर जबरदस्त स्पिन अटैक दिया था भारत को।

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
July 26, 2022 • 04:59 PM

प्रसन्ना ने टेस्ट डेब्यू किया जनवरी 1962 में और मार्च 1962 में दूसरा टेस्ट खेला। तब तक रिकॉर्ड था- 3 पारी में 4 विकेट। अपना अगला टेस्ट खेला जनवरी 1967 में वेस्टइंडीज के विरुद्ध चेन्नई में यानि कि लगभग 5 साल बाद। क्यों नहीं खेले इस बीच वे? क्या टीम में चुना नहीं या और कोई वजह थी? ये सवाल एक नई खबर की वजह से खास है।

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नई खबर ये कि भारत के पूर्व तेज गेंदबाज और गेंदबाजी कोच, वेंकटेश प्रसाद (1996 वर्ल्ड कप क्वार्टर फाइनल में पाकिस्तान के आमेर सोहेल के साथ टकराव की फेम वाले) ने 52 साल से भी बड़ी उम्र में पढ़ाई में डिग्री ली- इंटरनेशनल स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में पीजी सर्टिफिकेट। वे बड़े खुश हैं और अपनी पोस्ट में लिखा- 'सीखना कभी बंद न करें, क्योंकि जीवन कभी भी पढ़ाना बंद नहीं करता है।' उन्होंने लंदन यूनिवर्सिटी से ये पीजी सर्टिफिकेट लिया और अब वे खेलों में और ज्यादा योगदान देने के लिए तैयार हैं।

आप खेलों में हैं तो क्या हुआ- पढ़ाई काम आती है। ये बात कई क्रिकेटरों ने कही और इसीलिए या तो पढ़ाई के कारण क्रिकेट में देरी से आए या क्रिकेट के साथ/बाद में भी पढ़ना नहीं छोड़ा। एमएस धोनी में बड़ी चाह थी कि ग्रेजुएशन कर लें- कॉलेज में एडमीशन भी लिया पर इम्तहान देने की फुर्सत नहीं मिली। सचिन तेंदुलकर कभी यूनिवर्सिटी नहीं गए और न ही विराट कोहली। खुद इंजीनियर, अनिल कुंबले ने कुछ साल पहले BCCI को एक प्रोजेक्ट दिया था कि कैसे क्रिकेटर, कोचिंग के साथ-साथ खिलाड़ी ग्रेजुएशन कर सकते हैं पर बोर्ड ने इसे फाइल में बंद कर दिया।

अंडर-19 वर्ल्ड कप कप्तान उन्मुक्त चंद (जिनके फाइनल में शतक ने 2012 में भारत को टाइटल दिलाया था) पढ़ना चाहते थे पर सेंट स्टीफंस कॉलेज ने उन्हें अटेंडेंस शार्ट होने पर इम्तहान देने से रोक दिया। उन्मुक्त ने तब यूनिवर्सिटी चांसलर का दरवाजा खटखटाया था ये बताने कि वे देश की टीम के लिए खेल रहे थे और तब बात बनी। अब खेलने के साथ पढ़ना और भी मुश्किल हो गया है क्योंकि बचे-खुचे दिन आईपीएल ने छीन लिए। पढ़ाई के लिए इंटरनेशनल क्रिकेट या आईपीएल छोड़ने का दम हर किसी में नहीं।

इसी बात पर फिर से प्रसन्ना पर लौटते हैं। उनके 5 साल तक इंटरनेशनल क्रिकेट गायब रहने की बड़ी मजेदार स्टोरी है। वे टेस्ट टीम में आए तब इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। उस दौर में, सोच ये थी कि इंजीनियरिंग से करियर बनेगा- क्रिकेट खेलने से नहीं। प्रसन्ना ने टेस्ट डेब्यू पर सिर्फ एक विकेट लिया- तब भी 1962 के वेस्टइंडीज दौरे के लिए टीम में चुन लिया। ये खबर मिलने पर उनके पिता नाराज हो गए। वजह- इंजीनियरिंग की पढ़ाई छूटेगी और ये उन्हें पसंद नहीं था। मना कर दिया वेस्टइंडीज जाने से। उन्हें डर था कि बेटे का क्रिकेट खेलने का जुनून, पढ़ाई खत्म कर देगा।

उस समय BCCI सेक्रेटरी थे एम. चिन्नास्वामी जो बेंगलुरु के ही थे और वे चाहते थे बेंगलुरु के क्रिकेटरों को प्रमोट करना। वे चले गए मैसूर के महाराज के पास और उन की मदद से प्रसन्ना के पिता को मना लिया कि बेटे को वेस्टइंडीज जाने से न रोकें। तब प्रसन्ना के पिता ने शर्त रखी कि वेस्टइंडीज से लौटकर इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करनी होगी। शर्त मान ली और प्रसन्ना वेस्टइंडीज टूर पर चले गए। प्रसन्ना वहां एक टेस्ट खेले जिसमें 3 विकेट लिए। जब लौटे तो दुर्भाग्य से उनके पिता का देहांत हो गया था। शर्त को पूरा किया। क्रिकेट से ब्रेक ले लिया और इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की। 5 साल तक क्रिकेट से दूर रहे और डिग्री पूरी होने पर 300 रुपये महीने की नौकरी लग गई आईटीआई में।

डिग्री ली और तब फिर से क्रिकेट पर ध्यान देना शुरू कर दिया। बेंगलुरु में वेस्टइंडीज के विरुद्ध साउथ जोन के लिए खेले- इसी से वापसी हुई। पहली पारी में 87 रन देकर 8 विकेट लिए और पीछे मुड़कर नहीं देखा। अगर उन 5 साल में भी इंटरनेशनल क्रिकेट खेलते तो न जाने रिकॉर्ड क्या होता?

वेंकटेश प्रसाद ने क्रिकेट से रिटायर होने के कई साल बाद पढ़ाई की और एक नया रास्ता खोल दिया है।

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