भारत-इंग्लैंड़ टेस्ट सीरीज की ट्रॉफी जिनके नाम है,वो भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे सनसनीखेज विवाद में शामिल थे  

Updated: Mon, Feb 19 2024 14:41 IST
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Anthony De Mello Trophy and Lala Amarnath Controversy: भले ही बीसीसीआई की हर ऑफिशियल रिलीज केअनुसार, मौजूदा भारत-इंग्लैंड़ टेस्ट सीरीज (India vs England Test Trophy Name) का नाम आईडीएफसी फर्स्ट बैंक सीरीज है पर रिकॉर्ड के अनुसार सालों से भारत में भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज को बीसीसीआई के सबसे चर्चित एडमिनिस्ट्रेटर में से एक, एंथनी एस डी मेलो के नाम पर चांदी से बनी एंथनी डी मेलो ट्रॉफी दे रहे हैं। 

 

ये ट्रॉफी देने का सिलसिला 1951 से शुरू हुआ। सबसे बड़ा सवाल ये कि एक बोर्ड ऑफिशियल होने के बावजूद एंथनी डी मेलो इतने बड़े कैसे थे कि उनके नाम पर टेस्ट सीरीज की ट्रॉफी शुरू हुई? वे बीसीसीआई के संस्थापकों में से एक थे, बोर्ड सेक्रेटरी रहे लगभग 10 साल तक, बोर्ड प्रेसीडेंट रहे 1946-47 से 1950-51 तक और सबसे ख़ास ये कि भारतीय क्रिकेट के उन सालों के कई सनसनीखेज विवाद में शामिल रहे। 

ऐसे ही किस्सों में से एक उनकी लाला अमरनाथ के साथ ट्यूनिंग का है। इसकी शुरुआत 1936 में हो गई थी। सब जानते हैं कि लाला अमरनाथ को इंग्लैंड टूर के बीच से वापस भेज दिया था। तब एंथनी सीधे टीम से सीधे नहीं जुड़े थे पर बोर्ड सेक्रेटरी थे और जब विजी से अमरनाथ के साथ मतभेद सामने आए तो एंथनी ने विजी का साथ दिया था।  

भारतीय क्रिकेट के शुरू के सालों में, क्रिकेट से जुड़े लोगों के आपसी मतभेद ने क्रिकेट को बड़ा नुक्सान पहुंचाया। 1936 की उस घटना के बाद से लाला अमरनाथ और एंथनी डी मेलो की आपसी ट्यूनिंग कभी सही नहीं रही। इनका आपसी टकराव भारतीय क्रिकेट में मैच फिक्सिंग के बाद सबसे बड़ा सनसनीखेज मामला माना जाता है। लाला अमरनाथ में टेलेंट था पर वे डिप्लोमेटिक नहीं थे। बहरहाल एंथनी ने भारतीय क्रिकेट में उनकी जरूरत को पहचान कर उनके टेस्ट क्रिकेट में वापस लौटने का रास्ता नहीं रोका। 

टकराव तब भी चलते रहे पर 1949 में तो हद ही हो गई। तब एंथनी बोर्ड प्रेसीडेंट थे और लाला अमरनाथ कप्तान। 10 अप्रैल, 1949 को बोर्ड की एक ख़ास तौर पर बुलाई मीटिंग में एंथनी ने साफ़-साफ़ अमरनाथ पर डिसिप्लिन तोड़ने के गंभीर आरोप लगाए और सजा के तौर पर उन्हें बोर्ड की किसी भी क्रिकेट में खेलने से सस्पेंड कर दिया- न तो भारत के लिए और न ही किसी भी स्टेट के लिए खेल सकते थे। 

चार दिन बाद एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया को एक इंटरव्यू में एंथनी ने कहा- बोर्ड ने अमरनाथ के विरुद्ध इस कार्रवाई का फैसला पूरी सहमति से लिया और इतने सबूत सामने थे कि उनसे कोई जवाब मांगना या उनकी बात सुनना भी जरूरी नहीं समझा। 4 मई को क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया के गवर्नर पवेलियन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, एंथनी ने मीडिया को एक स्टेटमेंट के जरिए सभी 23 आरोप की लिस्ट थमा दी।

इन आरोप में ये भी लिखा था कि वे कप्तान के तौर पर अपनी ड्यूटी में लापरवाही दिखा रहे थे और उनके देर से आने की वजह से दिल्ली, बॉम्बे और कलकत्ता में, सीरीज के पहले तीन टेस्ट से पहले की, नेट प्रैक्टिस शुरू करने में देरी हुई और पूरा समय नहीं मिला। इसके अतिरिक्त, ये भी आरोप थे- 
- कप्तान के तौर पर ज्यादा फीस मांगी 
- दिल्ली टेस्ट के दौरान होटल में दोस्तों के मनोरंजन पर ऐसा खर्चा किया जिसकी इजाजत नहीं थी 
- मेहमान वेस्टइंडीज टीम के विरुद्ध बिल्कुल आख़िरी मौके पर स्टेट इलेवन की कप्तान से इंकार कर दिया 
- पूना में जो चोट आई उसके बारे में बोर्ड को कोई खबर नहीं दी और इसी वजह से वह दूसरे टेस्ट में सही नहीं खेल पाए और टीम को नुकसान हुआ 
- एंथनी के प्रति उनका खराब और घमंड से भरा व्यवहार, बोर्ड और उसके प्रेसीडेंट के विरुद्ध हर जगह ख़राब बोलना, प्रेस स्टेटमेंट देना और उन्हें भेजी दो चिठ्ठी का जवाब न देकर बोर्ड का अपमान किया
- वेस्टइंडीज के विरुद्ध आख़िरी दो टेस्ट की टीम में प्रोबीर सेन को खिलाने का वायदा किया और बदले में 5000 रुपये ले लिए 

अमरनाथ भी पूरे अटैक के मूड में थे। उन्हें बचाव के लिए अपनी बात कहने का मौका दिए बिना फैसले पर पहुंचना अजीब था और वे बोले- 'इस पर चुप नहीं रहूंगा।' यहां से बोर्ड टुकड़ों में बंटा। सबसे पहले अमरनाथ को बंगाल लॉबी का समर्थन मिला- उनके अधिकारी पंकज गुप्ता ने तो साफ़ कह दिया कि एंथनी अकेले ही किसी भी कीमत पर अमरनाथ को सस्पेंड करने पर लगे रहे। धीरे-धीरे और भी बोर्ड सदस्य टूटने लगे। इस बिगड़ते खेल पर एंथनी को बड़ी निराशा हुई पर उस निराशा में वे बौखला गए और ऐसी भाषा बोले जो शायद ही कभी बीसीसीआई के इतिहास में किसी बोर्ड प्रेसीडेंट ने बोली हो- 'अब अमरनाथ को ये दिखाने का वक्त आ गया है कि भले ही बोर्ड के ज्यादातर अधिकारी भौंकते न हों पर बोर्ड के पास एक ऐसा कुत्ता भी है जो डिसिप्लिन तोड़ने पर भौंक सकता है, काट सकता है।'

ये बीसीसीआई के इतिहास में सबसे खराब दौर था। आरोपों के जवाब में, अमरनाथ ने 5 जून को कलकत्ता में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और 39 पेज (27,000 शब्द) की एक स्टेटमेंट बांट दी जिसमेंसाफ़ लिखा था कि एंथनी सिर्फ उनसे व्यक्तिगत हिसाब-किताब चुकाने में बोर्ड को घसीट रहे हैं। 23 आरोप में से हर एक का जवाब दिया और ज्यादातर को गलत बताया।

5000 रुपये की रिश्वत के मामले में जवाब था कि ये पैसा उस 'अमरनाथ टेस्टिमोनियल फंड (Amarnath Testimonial Fund)' के लिए मिला था जिसे खुद 1947 में एंथनी ने शुरू किया था। असल में तब बोर्ड के कहने पर, टीम की जरूरत में, अमरनाथ ने लेंकशायर के साथ प्रोफेशनल कॉन्ट्रैक्ट तोड़ दिया था और ससेक्स काउंटी से मिले ऑफर से भी इंकार कर दिया। इस पर उनके नुक्सान की भरपाई के लिए एंथनी ने ये फंड बनाया और सभी से योगदान की अपील की थी। ये भी लिखा कि भला कैसे वे अकेले प्रोबीर को टीम में लेने का वायदा कर सकते थे जबकि अन्य दो सेलेक्टर फ़िरोज़ पालिया और एम दत्ता रॉय की मंजूरी भी जरूरी थी। ऐसे आरोप पर तो दत्ता रॉय और पालिया के विरुद्ध एक्शन क्यों नहीं लिया?

अमरनाथ की इस स्टेटमेंट ने बोर्ड को और तोड़ दिया। रिकॉर्ड में दर्ज है कि 31 जुलाई की बोर्ड की मीटिंग में 'समझौता' हुआ, अमरनाथ ने बोर्ड और उसके प्रेसीडेंट से माफी मांगी पर आम तौर पर इसे बीसीसीआई की हार माना गया। बाद में पता चला कि बीसीसीआई ने कानूनी सलाह ली थी और उसमें उन्हें बता दिया गया था कि वे अमरनाथ के विरुद्ध कुछ नहीं कर पाएंगे- सबसे ख़ास ये कि न तो अमरनाथ को नोटिस दिया और न ही अपनी बात कहने का मौका। 

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कुछ ही महीने बाद एंथनी को बीसीसीआई से बाहर कर दिया गया। पंकज गुप्ता और अमरनाथ की टीम ने तख्ता पलटा। लगभग 25 साल से एंथनी जिस बोर्ड की सबसे पावरफुल शख्सियत बने हुए थे- उसी से बाहर कर दिए गए। 

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